शनिवार, 28 सितंबर 2013

बचपन

- रवि मीणा 

जब बारिश की बूंदों में जानबूझकर भीगा करते थे हम ,

जब गर्मी की दुपहरी में पेड़ों तले ,खेला करते थे हम,

जब खेल-खेल में राजा बन लोगों में मार लगते थे हम,

जब एक चव्वनी की टॉफी, हमको उल्लासित करती थी,

जब दादी की कहानी, हमको स्लम-डॉग- सी लगती थी,

जब मम्मी का गुस्सा, हमको बन्दूक-तोप सा लगता था,

लेकिन वही प्यार बन ,जब हमको खूब भिगोता था ,

वो ममता का आँचल, याद यशोदा की दिलवाता था जब,


लेकिन ऐसा बचपन की यादों में होता था बस,


लेकिन ऐसा बचपन की यादों में होता था बस।


रोते रोते,गिरते पड़ते, विद्यालय जब जाते थे हम,

विद्यालय में जब, चीजो का सौदा करते थे हम,

विद्यालय में जब, खेलो की चर्चा करते थे हम,

लेकिन उसी बीच जब हिंदी वाले सर जाते थे,

करके खड़े, खड़े हाथ जब वो करवाते थे,

उस अध्यापक को मन ही मन गाली खूब सुनाते थे हम,

हर पीरियड में मम्मी की याद सताती थी जब,

छुट्टी की घंटी सुन कानो में,खूब उछलते थे जब हम,


लेकिन ऐसा बचपन की यादों में होता था बस,

लेकिन ऐसा बचपन की यादों में होता था बस।

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