- ' नित्यानंद झा '
अमावस की काली रातों में
जीवन तलाश रहा हूँ ,
उम्मीद मन में लगाये ,
कोई रौशनी की किरण -
चाहे दूर हो या पास
जो छु ले तन को ,
जो मन को टटोल दे ,
जो इस कमजोर शरीर में
जान की खुशबू डाल दे ,
जो फिर से मन को समझा दे ,
जो फिर से कानों को बोल जाये ,
जो सागर की लहरों की तरह आये
और तन को छुकर मोहित कर दे,
जो पर्वत की तरह कठोर हो
पर मन माताओं जैसी कोमल ,
जो फूलों से चुराकर
खुशबू मुझपर बरसा दे
जिसकी धार तलवार जैसी हो
पर अहिंसा से प्रेम करती हो ,
जिसमे नीम-सा तीतापन क्यों ना हो -
पर जरुरत में दवा बन जाती हो ,
जिसमे पीतल से भी कम चमक ही हो
पर मेरे भाग्य को चमका सकती हो ,
जो बच्चों जैसी चंचल क्यूँ ना हो
मुझे धैर्यवान बना सकती हो ,
जिसे अपने ऊपर गर्व हो तो क्या
मुझे झुकना सिखा सकती हो
यही एक छोटी सी बिनती है मेरी
एक ऐसी ही किरण की तलाश है
इस अमावस की काली रातों में |
( लेखक स्नातक के चतुर्थ-वर्षीय छात्र हैं )
अमावस की काली रातों में
जीवन तलाश रहा हूँ ,
उम्मीद मन में लगाये ,
कोई रौशनी की किरण -
चाहे दूर हो या पास
जो छु ले तन को ,
जो मन को टटोल दे ,
जो इस कमजोर शरीर में
जान की खुशबू डाल दे ,
जो फिर से मन को समझा दे ,
जो फिर से कानों को बोल जाये ,
जो सागर की लहरों की तरह आये
और तन को छुकर मोहित कर दे,
जो पर्वत की तरह कठोर हो
पर मन माताओं जैसी कोमल ,
जो फूलों से चुराकर
खुशबू मुझपर बरसा दे
जिसकी धार तलवार जैसी हो
पर अहिंसा से प्रेम करती हो ,
जिसमे नीम-सा तीतापन क्यों ना हो -
पर जरुरत में दवा बन जाती हो ,
जिसमे पीतल से भी कम चमक ही हो
पर मेरे भाग्य को चमका सकती हो ,
जो बच्चों जैसी चंचल क्यूँ ना हो
मुझे धैर्यवान बना सकती हो ,
जिसे अपने ऊपर गर्व हो तो क्या
मुझे झुकना सिखा सकती हो
यही एक छोटी सी बिनती है मेरी
एक ऐसी ही किरण की तलाश है
इस अमावस की काली रातों में |
( लेखक स्नातक के चतुर्थ-वर्षीय छात्र हैं )
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