- रवि मीणा
मैं मरुथल की माटी हूँ ,तुम नदियों का नीर सही,
मैं पड़ा-पड़ा सा रहता हूँ , तुम करते नित सैर नई,
मैं बंजर भूमि का नाचीजी टुकड़ा हूँ , तुम जीवन के स्रोत सही,
मैं जुदा-जुदा सा रहता हूँ तुम लोगों के बीच सही
लेकिन नित सैर-सपाटे करने वाले,नित जीवन के मजे उठाने वाले,
इक दिन तुझको भी सागर में जाकर नमकीनी बन जाना है,
इक दिन तुझको भी सागर में जाकर सागर का कैदी बन जाना है,
मेरा क्या ?
मैं तो एक समीरी झोके से, लम्बी नहीं तो छोटी दौड़ लगा लूँगा,
मैं तो एक समीरी झोके से, खुद को दुनिया के दीदार करा लूँगा।
पर जब तू सागर में बंद अकेला होएगा,
जब तू सागर में बंद अकेला रोएगा,
तब तू मरुथल का दुख समझेगा,
तब तू मरुथल का सुख समझेगा।
( लेखक जन-अभियांत्रिकी में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं )
मैं पड़ा-पड़ा सा रहता हूँ , तुम करते नित सैर नई,
मैं बंजर भूमि का नाचीजी टुकड़ा हूँ , तुम जीवन के स्रोत सही,
मैं जुदा-जुदा सा रहता हूँ तुम लोगों के बीच सही
लेकिन नित सैर-सपाटे करने वाले,नित जीवन के मजे उठाने वाले,
इक दिन तुझको भी सागर में जाकर नमकीनी बन जाना है,
इक दिन तुझको भी सागर में जाकर सागर का कैदी बन जाना है,
मेरा क्या ?
मैं तो एक समीरी झोके से, लम्बी नहीं तो छोटी दौड़ लगा लूँगा,
मैं तो एक समीरी झोके से, खुद को दुनिया के दीदार करा लूँगा।
पर जब तू सागर में बंद अकेला होएगा,
जब तू सागर में बंद अकेला रोएगा,
तब तू मरुथल का दुख समझेगा,
तब तू मरुथल का सुख समझेगा।
( लेखक जन-अभियांत्रिकी में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं )
beautiful lines indeed!!!
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