(चित्र http://www.topart168.com से साभार )
मैं जब भी सोचता हूँ
अपनी सबसे अच्छी शाम के
बारे में
वो होती है
मेरे बिस्तर की तरह
पूरी खुली हुई
और मैं दिला रहा होता हूँ
अपने आप को इस बात का भरोसा
कि मेरा शिकंजा ढीला नहीं
है|
मैं जब भी सोचता हूँ
अपनी सबसे अच्छी रात के
बारे में
पढ़ते हुए मार्केज़ को या
फ़िर साहिर को
नींद आकर पसर जाती है
वो किताब को मुझसे ले जाती
है
और फ़िर बंद कर देती है रौशनी
का स्विच |
मैं जब भी सोचता हूँ
अपनी सबसे अच्छी सुबह के
बारे में
वो उठ चुकी होती है
और मेरी नींद टूटती है
किचन की खटपट से
लेकिन वो सामने होती है
पल्लू कमर में खोसे
मुस्कान के साथ
पैरों तले कुचल गए कीड़े
की
बिलबिलाहट-सी मुस्कान के
साथ
मेरा ध्यान सिर्फ़ प्याले
पर होता है |
मैं जब भी सोचता हूँ
अपने सबसे अच्छे दिन के
बारे में
लंचबॉक्स में कोफ्ते होते
हैं
अपनी उँगलियों को चाटते
समय लेकिन
मुझे उसकी उंगलियाँ नहीं
याद आतीं |
ये भी नहीं कि
वो क्या कर रही होगी इस
समय
वहाँ
जहाँ मैं उसे रखकर भूल
गया
बहुत पहले |
पता नहीं क्यों
आज मन किया
ढूँढने का
उससे बात करने का
और ये सब कुछ
बदल कर लिख डालने का
जैसे
सबसे अच्छी रात में
मैं नींद तोड़कर उठा
और मैंने चूम लिए
उसके सुस्ताते हुए होंठ |
बस मन किया
लिख लिया
क्या किया ?
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