- अभिलाषा सिंह
आधुनिकता के जाले बुनते हैं
मकड़ी समान इंसान,
इस दुनिया में उलझते हैं
कुछ जाले आसमान में,
भूल जाते हैं लेकिन
कि ये सब धूल है,
खो जाते हैं इसमे
ढूंढते हुए नए आकाश।
पर कुछ समय बाद
यही खोना
एक तीखा काँटा बन जाता है।
(लेखिका राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हैं)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें