सोमवार, 11 अगस्त 2014

मैं अपने कमरे पर ही रहता हूँ...

- आयुष्मान


 ( चित्र swmindia.blogspot.com से साभार)


मैं अपने कमरे पर ही रहता हूँ
हाँ! खिड़की से ज़रूर देखा है
सड़क के किनारों पर कुछ पेड़ लगे हैं
छोटे ही हैं अभी
लाल हरी बैरीकेडिंग में घेर के रखे गए हैं
कुछ गायें अक्सर उनके आस पास गर्दन लम्बी करती रहती हैं
उधर एक समोसे की दूकान है
जिसके बगल में कूड़े का ढेर के बीच एक बड़ा सा डब्बा दबा है
जिस पर नगर निगम जैसा कुछ लिखा हुआ है
उसमे कुत्ते शायद कुछ ढूंढा करते हैं
यूँ तो उन्हें कभी कुछ मिलता नहीं
पर कभी कभी वो पीठ पर बोरी टांग कर आते हैं
और उसी ढेर में से कुछ कुछ उठाकर बोरी में भर लिया करते हैं |
कूड़े की ढेर से निराश हो के कुत्ते समोसे की दुकान पर
थालियों के पास खड़े दुम हिलाया करते हैं
और टुकड़ा फेकने पर खा लेते हैं
पर वो दो पैरों वाले 'कुत्ते'....
पहले तो आधा नहीं पर पूरा समोसा देने पर खा लेते थे
आज कल कुछ काग़ज़ के टुकड़े मांगते हैं|
सामने बिजले के तारों पर
इस पेड़ से उस पेड़ गिलहरियाँ छुप-छुप कर भागती हैं
डरती होंगी शायद ये सब देख के
मैं भी बहुत डरता हूँ,
पर एक दीवार है मेरी
मुझे बचा कर रखती है |
उस पर कुछ अजीब-अजीब सी चीजें लिख रखी हैं मैंने
वहीँ बगल में मेरा बिस्तर लगा है
सामने मेज़ पर कुछ काग़ज़ बिखरे रहते हैं
बाकी उन पर लिख देता हूँ,
पर मैं बाहर नहीं निकलता
मैं अपने कमरे पर ही रहता हूँ|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें