सोमवार, 12 मई 2014

सुनहरी जिल्द वाली किताब












 






(चित्र www.geh.org से साभार)

ये सुनहरी जिल्द वाली किताब
जिसे हम ज़िन्दगी कहते हैं
थोड़ी महंगी है
सुना है हमने ये भी
हमारे सपने लिखे हुए हैं अन्दर
तो क्यूँ न खोलकर देख लिया जाये |
 
या फिर किसी पुरानी 
सस्ती किताब पर 
अख़बार का कवर चढ़ा
उसे ही अपने साथ रख लें?

क्या आपको लिखने का शौक है?
तो फिर चलो ना
ज़िन्दगी लिखते हैं.
विश्वास मानिए
मैं इतना बुरा भी नहीं लिखता.

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